Tuesday Mar 23, 2010

अनुदर्शन

उड़ गये ज़िन्दगी के बरस रे कई, राग सूनी अभावों भरी ज़िन्दगी के बरस हाँ, कई उड़ गये ! लौट कर आयगा अब नहीं वक़्त जो धूल में, धूप में खो गया, स्याह में सो गया ! शोर में चीखती ही रही ज़िन्दगी, हर क़दम पर विवश, कोशिशों में अधिक विवश ! गा न पाया कभी एक भी गीत मैं हर्ष का, एक भी गीत मैं दर्द का ! गूँजता रव रहा मात्र : संघर्ष....संघर्ष... संघर्ष ! विश्रान्ति के पथ सभी मुड़ गये ! ज़िन्दगी के बरस, रे कई देखते...देखते उड़ गये !

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