Tuesday Mar 23, 2010

रात बीतेगी

अँधेरा....

रात गहरी है,

रात बहरी है !

बहुत समझाया कि

सो जा !

रे मन

थके ग़मगीन मन

ज़िन्दगी के खेल में हारे हुए

दुर्भाग्य के मारे हुए

रे दरिद्र मन

सो जा !

रात सोने के लिए है

सपने सँजोने के लिए है,

कुछ क्षणों को

अस्तित्व खोने के लिए है,

तारिकाओं से भरी यह रात

परियों-साथ सोने के लिए है !

सो !

दर्द है,

और सूनी रात बेहद सर्द है !

जीवन नहीं अपना रहा,

अब न बाक़ी देखना सपना रहा !

रात...

जगने के लिए है !

..... बेचैनियों की भट्ठियों में

फिर-फिर सुलगने के लिए है !

रात....

गहरी रात

बहरी रात

हमने बिता दी

जग कर बिता दी !

कल फिर यही होगा

अँधेरा आयगा !

खामोश

धीरे, बड़े धीरे

कफ़न-सा

फिर अँधेरा आयगा !

रे मन

जगने के लिए

चुपचाप

आँखें बन्द कर लेना,

भीतर सुलगने के लिए

ज़िन्दगी पर राख धर लेना !

रात

काली रात

बीतेगी .... बीतेगी !

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