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POEM : MAHENDRA BHATNAGAR

Monday Jun 21, 2010

Monday Jun 21, 2010


आतंक-मोचन : नव-वर्ष : 2009
कवि : महेंद्रभटनागर
.
नूतन वर्ष आया है!
अमन का, चैन का उपहार लाया है!

.
आतंक के माहौल से अब मु‌‌‍क्‍त होंगे हम,
ऐसा घना अब और छाएगा नहीं भ्रम-तम,
नूतन वर्ष आया है!
मधुर बंधुत्व का विस्तार लाया है!
.
सौगन्ध है — जन-जन सदा जाग्रत रहेगा अब,
संकल्प है — रक्षित सदा भारत रहेगा अव,
नूतन वर्ष आया है!
सुरक्षा का सुदृढ़ आधार लाया है!
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Friday Mar 26, 2010



कुछ लोग
चाहे ज़ोर से कितना
बजाएँ युद्ध का डंका
पर, हम कभी भी
शांति का झंडा
ज़रा झुकने नहीं देंगे !
हम कभी भी
शांति की आवाज़ को
दबने नहीं देंगे !
.

क्योंकि हम
इतिहास के आरम्भ से
इंसानियत में,
शांति में
विश्वास रखते हैं,
गौतम और गांधी को
हृदय के पास रखते हैं !
.

किसी को भी सताना
पाप सचमुच में समझते हैं,
नहीं हम व्यर्थ में पथ में
किसी से जा उलझते हैं !
.

हमारे पास केवल
विश्व-मैत्री का
परस्पर प्यार का संदेश है,
.
हमारा स्नेह -
पीड़ित ध्वस्त दुनिया के लिए
अवशेष है !
.
हमारे हाथ -
गिरतों को उठाएंगे,
हज़ारों
मूक, बंदी, त्रस्त, नत,
भयभीत, घायल औरतों को
दानवों के क्रूर पंजों से बचाएंगे !
.

हमें नादान बच्चों की हँसी
लगती बड़ी प्यारी ;
हमें लगती
किसानों के
गड़रियों के
गलों से गीत की कड़ियाँ
मनोहारी !
.

खुशी के गीत गाते इन गलों में
हम
कराहों और आहों को
कभी जाने नहीं देंगे !
हँसी पर ख़ून के छींटे
कभी पड़ने नहीं देंगे !
.

नये इंसान के मासूम सपनों पर
कभी भी बिजलियाँ गिरने नहीं देंगे !
.
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कला-साधना

Thursday Mar 25, 2010

Thursday Mar 25, 2010

हर हृदय में
स्नेह की दो बूँद ढल जाएँ
कला की साधना है इसलिए !
.

गीत गाओ
मोम में पाषाण बदलेगा,
तप्त मरुथल में
तरल रस ज्वार मचलेगा !
.

गीत गाओ
शांत झंझावात होगा,
रात का साया
सुनहरा प्रात होगा !
.

गीत गाओ
मृत्यु की सुनसान घाटी में
नया जीवन-विहंगम चहचहाएगा !
मूक रोदन भी चकित हो
ज्योत्स्ना-सा मुसकराएगा !
.

हर हृदय में
जगमगाए दीप
महके मधु-सुरिभ चंदन
कला की अर्चना है इसलिए !
.

गीत गाओ
स्वर्ग से सुंदर धरा होगी,
दूर मानव से जरा होगी,
देव होगा नर,
व नारी अप्सरा होगी !
.

गीत गाओ
त्रस्त जीवन में
सरस मधुमास आ जाए,
डाल पर, हर फूल पर
उल्लास छा जाए !
पुतलियों को
स्वप्न की सौगात आए !
गीत गाओ
विश्व-व्यापी तार पर झंकार कर !
प्रत्येक मानस डोल जाए
प्यार के अनमोल स्वर पर !
.

हर मनुज में
बोध हो सौन्दर्य का जाग्रत
कला की कामना है इसलिए !


रात बीतेगी

Tuesday Mar 23, 2010

Tuesday Mar 23, 2010



अँधेरा....
रात गहरी है,
रात बहरी है !

बहुत समझाया कि
सो जा !
रे मन
थके ग़मगीन मन
ज़िन्दगी के खेल में हारे हुए
दुर्भाग्य के मारे हुए
रे दरिद्र मन
सो जा !

रात सोने के लिए है
सपने सँजोने के लिए है,
कुछ क्षणों को
अस्तित्व खोने के लिए है,
तारिकाओं से भरी यह रात
परियों-साथ सोने के लिए है !
सो !

दर्द है,
और सूनी रात बेहद सर्द है !

जीवन नहीं अपना रहा,
अब न बाक़ी देखना सपना रहा !

रात...
जगने के लिए है !
..... बेचैनियों की भट्ठियों में
फिर-फिर सुलगने के लिए है !

रात....
गहरी रात
बहरी रात
हमने बिता दी
जग कर बिता दी !

कल फिर यही होगा
अँधेरा आयगा !
खामोश
धीरे, बड़े धीरे
कफ़न-सा
फिर अँधेरा आयगा !
रे मन
जगने के लिए
चुपचाप
आँखें बन्द कर लेना,
भीतर सुलगने के लिए
ज़िन्दगी पर राख धर लेना !

रात
काली रात
बीतेगी .... बीतेगी !

अनुदर्शन

Tuesday Mar 23, 2010

Tuesday Mar 23, 2010



उड़ गये
ज़िन्दगी के बरस रे कई,
राग सूनी
अभावों भरी
ज़िन्दगी के बरस
हाँ, कई उड़ गये !

लौट कर
आयगा अब नहीं
वक़्त
जो —
धूल में, धूप में
खो गया,
स्याह में सो गया !

शोर में
चीखती ही रही ज़िन्दगी,
हर क़दम पर विवश,
कोशिशों में अधिक विवश !

गा न पाया कभी
एक भी गीत मैं हर्ष का,
एक भी गीत मैं दर्द का !

गूँजता रव रहा
मात्र :
संघर्ष....संघर्ष... संघर्ष !
विश्रान्ति के
पथ सभी मुड़ गये !
ज़िन्दगी के बरस,
रे कई
देखते...देखते
उड़ गये !

Tuesday Mar 23, 2010

राग-संवेदन / 2
.
तुम —
बजाओ साज़
दिल का,
ज़िन्दगी का गीत
मैं —
गाऊँ!
.
उम्र यों
ढलती रहे,
उर में
धड़कती साँस यह
चलती रहे!
दोनों हृदय में
स्नेह की बाती लहर
बलती रहे!
जीवन्त प्राणों में
परस्पर
भावना - संवेदना
पलती रहे!
.
तुम —
सुनाओ
इक कहानी प्यार की
मोहक,
सुन जिसे
मैं —
चैन से
कुछ क्षण
कि सो जाऊँ!
दर्द सारा भूल कर
मधु-स्वप्न में
बेफ़िक्र खो जाऊँ!
.
तुम —
बहाओ प्यार-जल की
छलछलाती धार,
चरणों पर तुम्हारे
स्वर्ग - वैभव
मैं —
झुका लाऊँ!

.

मेघ-गीत

Tuesday Mar 23, 2010

Tuesday Mar 23, 2010



उमड़ते-गरजते चले आ रहे घन
घिरा व्योम सारा कि बहता प्रभंजन
अँधेरी उभरती अवनि पर निशा-सी
घटाएँ सुहानी उड़ीं दे निमन्त्रण !
.

कि बरसो जलद रे जलन पर निरंतर
तपी और झुलसी विजन-भूमि दिन भर,
करो शान्त प्रत्येक कण आज शीतल
हरी हो, भरी हो प्रकृति नव्य सुन्दर !
.

झड़ी पर, झड़ी पर, झड़ी पर, झड़ी हो,
जगत मंच पर सौम्य शोभा खड़ी हो,
गगन से झरो मेघ ओ! आज रिमझिम,
बरस लो सतत, मोतियों-सी लड़ी हो !
.

हवा के झकोरे उड़ा गंध-पानी
मिटा दी सभी उष्णता की निशानी,
नहाती दिवारें नयी औ’ पुरानी
डगर में कहीं स्रोत चंचल रवानी !
.

कृषक ने पसीने बहाये नहीं थे,
नवल बीज भू पर उगाये नहीं थे,
सृजन-पंथ पर हल न आये अभी थे
खिले औ’ पके फल न खाये कहीं थे !
.

दृगों को उठा कर, गगन में अड़ा कर
प्रतीक्षा तुम्हारी सतत लौ लगा कर —
हृदय से, श्रवण से, नयन से व तन से,
घिरो घन, उड़ो घन घुमड़कर जगत पर !
.

अजब हो छटा बिजलियाँ चमचमाएँ,
अँधेरा सघन, लुप्त हो सब दिशाएँ
भरन पर, भरन पर सुना राग नूतन
नया प्रेम का मुक्त-संदेश छाये !
.

विजन शुष्क आँचल हरा हो, हरा हो,
जवानी भरी हो सुहागिन धरा हो,
चपलता बिछलती, सरलता शरमती,
नयन स्नेहमय ज्योति, जीवन भरा हो !
.
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Copyright 2014 Mahendra Bhatnagar. All rights reserved.

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